मेसोपोटामिया की सभ्यता

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मेसोपोटामिया की सभ्यता (Mesopotamian Civilization)

मानव सभ्यता के इतिहास में पाषाणकाल के बाद ताम्रकाल और कांस्यकाल आए। पाषाणकाल की सभ्यताएँ अरण्यों, कंदराओं, नखलिस्तानों, झीलों के किनारों और कुछ नदियों के किनारों तक सीमित थीं। ताम्र और कांस्यकालीन सभ्यताएँ, हालांकि, नदी-घाटियों में केंद्रित थीं। इनमें मिस्र, पूर्वी भूमध्यसागर और भारत में सिंधु नदी उपत्यका शामिल था। इनमें दजला-फरात, नील और सिंधु नदियों के उर्वर और संपन्न क्षेत्रों में मानव सभ्यता का विकास हुआ। मानव ने इन नदी-घाटियों में मौजूद सुविधाओं का एक साथ उपयोग नहीं किया, हालांकि वे समकालीन हैं। इसलिए सबसे पहले सभ्यता का उद्भव और विकास कहाँ हुआ, यह अभी स्पष्ट नहीं है।

हाल, चाइल्ड, मार्शल, वूली और अन्य विद्वानों ने एक समय हड़प्पा सभ्यता को प्राचीनतम मानने का दावा किया था. लेकिन, अधुनातन साक्ष्यों और उत्खननों से प्राप्त सिंधु सभ्यता की तिथियों को देखते हुए, इन विद्वानों का दावा सही नहीं लगता।

जब बात नील घाटी और दजला-फरात घाटी की सभ्यताओं की है, विल ड्युरेंट, फ्रैंकफोर्ट, मास्पेरो और अन्य पुराविदों ने दजला-फरात घाटी में विकसित सुमेरियन सभ्यता को सबसे पुराना मानने का दावा किया है। इन विद्वानों का कहना है कि धातु, लिपि, चाक, मुद्रा, पहियेदार गाड़ी आदि के बारे में सबसे पहले सुमेरियनों को पता था। तब मिस्रवासी इनसे परिचित हुए।

खनिजों से पता चलता है कि मिस्री सभ्यता के प्रारंभिक स्तरों पर सुमेरियन सभ्यता के कई सांस्कृतिक तत्वों को अपनाया गया था, लेकिन कुछ कारणों से बाद में उन्हें भूलना पड़ा। कुछ पुरातत्ववेत्ता कहते हैं कि सुमेरियन कीलाक्षर लिपि ने प्राग्वंशीय मिस्री लिपि पर प्रभाव डाला था।

किंतु ब्रेस्टेड, स्मिथ और अन्य विद्वानों ने नील घाटी की सभ्यता की पुरानी होने की पुष्टि की है। इनका तर्क है कि नील घाटी में संयुक्त राज्य बहुत पहले से था, जबकि सुमेरिया में ऐतिहासिक काल के प्रारंभ में कई नगर-राज्य थे।

मेसोपोटामिया का अर्थ (Meaning of Mesopotamia)



मेसोपोटामिया की सभ्यता का विस्तार-क्षेत्र

मेसोपोटामिया की सभ्यता विश्व सभ्यता में एक महत्वपूर्ण स्थान है। "मेसोपोटामिया" ग्रीक शब्दों "मेसो" और "पोटामिया" से बना है। मेसोपोटामिया दो नदियों के बीच के क्षेत्र (देाआब) को कहते हैं, जिसमें मेसो का अर्थ है मध्य (बीच) और पोटामिया का अर्थ है नदी। पुराने समय में, पश्चिमी एशिया में फारस की खाड़ी के उत्तर में वर्तमान इराक को मेसोपोटामिया कहा जाता था।

सभ्यताओं का संगम-स्थल

मेसोपोटामिया का क्षेत्र भूमध्य सागर और कालासागर से घिरा हुआ है. कालासागर उत्तर में है, अरब सागर दक्षिण में है, कैस्पियन सागर, ईरान का पठार, फारस की खाड़ी पूरब में है, और भूमध्य सागर और कालासागर पश्चिम में हैं।

मेसोपोटामिया क्षेत्र के समीपवर्ती सागर ने यहाँ की सभ्यताओं को मिनोअन, सिंधु एवं चीन की सभ्यताओं से संपर्क बनाया। दक्षिणी पश्चिमी एशिया इसलिए समकालीन सभ्यताओं का संगमस्थल है।

पुरातत्त्वविद् गार्डन चाइल्ड ने कहा कि मेसोपोटामिया एक विशाल सरोवर है, जिसने कई स्रोतों को जन्म दिया है। विलड्यूरेंट भी मानता है कि क्रीट, रोम, आधुनिक यूनान और यूरोपीय सभ्यता ने आधुनिक अमेरिका और यूरोपीय सभ्यताओं को आधार दिया।

भौगोलिक विस्तार

दक्षिण-पश्चिम एशिया को भौगोलिक रूप से तीन भागों में बांटा जा सकता है: उत्तर का पर्वतीय क्षेत्र, मध्य का उपजाऊ अर्द्धचंद्राकार क्षेत्र और दक्षिण (अरब) का बड़ा मरुस्थल। विभिन्न जातियों ने इन तीनों क्षेत्रों को अपनी क्रीड़ास्थली और सभ्यता बनाया।

उत्तर के पहाड़ी इलाकों में सदैव क्रूर, क्रूर और भोले-भाले बर्बर जाति रहती है। यहाँ एक एशियाई माइनर लड़ाकू हित्ती जाति रहती थी। आर्मीनिया के पहाड़ों में एक जाति रहती थी, जो असीरिया को हर समय परेशान करती थी। मीड लोगों ने असीरिया और कसाइट लोगों ने बेबीलोनिया छोड़ा।

ऊँचाई पर एक उपजाऊ पेटिका है। इसे फर्टाइल क्रेसेंट या उर्वर अर्धचंद्र कहा जाता है क्योंकि यह उर्वर है। दजला-फरात और उसकी सहायक नदियां इस क्षेत्र को शस्य-श्यामल बनाते हैं। इन दोनों नदियों ने ईराक को वही लाभ दिया है जो मिस्र को नील नदी ने दिया है। दजला-फरात नदियाँ मिस्र के लिए वरदान के समान हैं, अगर नील नदी उसके लिए वरदान है। दोनों नदियाँ अर्मीनिया पहाड़ियों से बहती हैं। दोनों नदियाँ दक्षिण की ओर बहते हुए फारस की खाड़ी में अंततः गिरती हैं, जो बहुत बड़ा क्षेत्र अपनी धारा से भरती है। दोनों नदियों ने बनाया गया क्षेत्र हर वर्ष बाढ़ से ढक जाता है, जो कुछ दिनों तक उपयोगी नहीं होता। प्रारंभ में यह अयोग्यता लंबे समय तक रहती थी, लेकिन जब मानव ने प्रकृति पर अपने बुद्धि-कौशल से नियंत्रण प्राप्त कर लिया, तो यह क्षेत्र उसके लिए उपयोगी हो गया और उसकी सारी आर्थिक व्यवस्था इस पर निर्भर हुई।

उर्वर अर्धचंद्र के निकट एक बड़ा रेगिस्तान है, जिसका आकार उर्वर अर्धचंद्र से लगभग समान है। यह क्षेत्र शुष्क था, इसलिए खेती नहीं की जा सकती थी। इसलिए, यहाँ के लोगों का जीवन मूलतः लूटपाट पर था, और वे लगातार अपने आसपास के जीवित अर्धचंद्र के लोगों को लूटते रहते थे। प्रजातीय रूप से दोनों में सेमिटिक गुण थे, लेकिन एक की जीवन-विधा निश्चित थी, दूसरे की अनिश्चित। दजला-फरात घाटी ने सांस्कृतिक विकास और जीवन-शैली में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

मेसोपोटामिया क्षेत्र के दजला-फरात की घाटी में क्रमशः चार सभ्यताएं विकसित हुईं: सुमेरियन, बेबीलोनियन, असीरियन और कैल्डियन। इन सभ्यताओं के उन्नायकों में सुमेरियनों, बेबिलोनियनों और कैल्डियनों ने शांतिपरक संस्कृति बनाई, लेकिन असीरियनों ने सैनिक मूल्यों को विकसित किया और मेसोपोटामिया की संस्कृति को बचाया। इन सभ्यताओं के बारे में कहावत है कि सुमेरियनों ने सभ्यता को जन्म दिया, बेबीलोनियनों ने उसे उत्पत्ति के चरम शिखर तक पहुँचाया और असीरियनों ने उसे अपनाया।

दूसरे शब्दों में, "मेसोपोटामिया की सभ्यता" सुमेरिया, बेबीलोनिया, असीरिया और कैल्डियन सभ्यताओं के एकीकरण से पैदा हुई।

सुमेरियन सभ्यता (Sumerian Civilization)

पुराने समय में, सुमेर मेसोपोटामिया के दक्षिणी भाग का प्रमुख केंद्र था। यह दजला-फरात घाटी के दक्षिणी हिस्से में है। सुमेर का उत्तर-पूर्व हिस्सा अक्काद और बाबुल (बेबीलोन) कहलाता था, जबकि उत्तर की ऊँची जमीन असीरिया कहलाती थी।

बाद में उत्तर की पहाड़ियों से आने वाले सुमेरियन लोगों ने मेसोपोटामिया में बस गया और एक बहुत समृद्ध सभ्यता बनाई, जिसे सुमेरियन सभ्यता कहा जाता है।

सुमेरियन लोगों ने पहले नगर-राज्य बनाए। एरिडु, एरेक, उर, लगश, निप्पुर, ईशिन, लारसा, किश और अन्य प्रसिद्ध राज्यों में शामिल थे। इनमें एरिडु, एरेक तथा उर फरात के पश्चिम में, निप्पुर, ईशिन तथा लारसा के पूरब में, किश तथा बेबीलोन के निकट-पूर्व में और लगश दोनों नदियों के मध्य में थे। इस सभ्यता का पहला संस्थापक था सारगोन। लगभग 3000 ईसापूर्व में सुमेरियन लोगों ने "कीलाकार लिपि" बनाई। इनकी कीलाक्षर लिपि सबसे प्राचीन है। ।

सुमेरियन टिन और ताँबा मिलाकर काँसा बनाने की कला से परिचित थे। सुमेरियन ही स्तंभों, मेहराबों और गुंबदों को बनाया था। इसके अलावा, सुमेरिया में ही दासता, निरंकुशता, धर्मांधता और साम्राज्यवाद से उत्पन्न निर्मम युद्धों का पहला उदाहरण मिलता है। सुमेरियन भी सामाजिक भेदभाव और शोषण के पहले पीड़ित थे। विलड्यूरेंट ने कहा कि सिंचाई की सबसे पहली प्राचीन व्यवस्था, ऋण व्यवस्था, लेखन, न्याय विधान, विद्यालय, पुस्तकालय, प्राचीन मंदिर, मूर्तियाँ, मेहराब और गुंबद सुमेरिया की अविश्वसनीय देन है।

बेबीलोनियन सभ्यता (Babylonian Civilization)

किंतु 2100 ईसापूर्व, सुमेरियन सभ्यता के लगभग समाप्त होने पर, पश्चिमी सेमाइटों ने बाबुल या बेबीलोन में एक नई सभ्यता की नींव डाली। इसलिए इसे बेबीलोनिया सभ्यता कहा जाता है।

सुमेरियन संस्कृति के कर्ता-धर्ता बेबीलोनियन संस्कृति से बहुत मिलते-जुलते हैं। यही कारण है कि बेबीलोनियन सभ्यता और सुमेरियन सभ्यता में कई समानताएँ हैं। इस सभ्यता का राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्र ईशिन, लारसा, बेबीलोनिया, मारी और असुर था।

विभिन्न नगर-राज्यों में होने वाली लड़ाइयों को रोककर, हम्मूराबी ने बेबीलोन में एक मजबूत राज्य बनाया। उसकी विधि-संहिता के कारण उसे दुनिया का पहला कानून बनाया गया है। यहाँ मंदिर राज्य की संपत्ति थे, जिसे "जिगुरात" कहा जाता था।

इस तरह, बेबिलोनियन संस्कृति और सभ्यता ने अंग-सौष्ठव को विकसित किया। इसमें राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तन हुए। यह संस्कृति की गरिमारश्मि ने अन्य संस्कृतियों को भी प्रभावित किया। इनके कुछ आविष्कार और अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण थे। धर्म में पुरोहित महत्वपूर्ण था। मुस्लिम मस्जिदों पर इनके जिगुरतों का असर दिखाई देता है।

विधि के क्षेत्र में हम्मूराबी की विधि-संहिता प्राचीन विश्व को उतना ही ऋणी है जितना आज का रोम। बेबिलोनियन समाज ने अर्थ-व्यापार, कला-साहित्य, विज्ञाना और अन्य क्षेत्रों में बहुत अधिक प्रगति नहीं की, लेकिन उन्हें सुमेरियन सभ्यता के मूल सांस्कृतिक तत्वों को विकसित करने में कुछ सफलता मिली थी।

असीरियन सभ्यता (Assyrian Civilization)

1100 ईसापूर्व के आसपास, हम्मूराबी की मृत्यु के बाद असीरियाई लोगों ने बेबीलोन पर आक्रमण कर अपना लगभग नियंत्रण कर लिया। इन्होंने मेसोपोटोमिया के बड़े हिस्से पर अपना साम्राज्य बनाया। असीरियनों का राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र ‘असुर’ नामक नगर रहा है, इसलिए इन्हें असीरियन कहा जाता है। असुर, आरवेला, कालाख और निनवेह इनकी सभ्यता के महत्वपूर्ण केंद्र थे। दजला नदी के किनारे स्थित निनवेह असीरियनों की राजधानी थी।

असीरियनों ने बेबिलोनियन सभ्यता की सांस्कृतिक विशेषताओं को स्वीकार कर उन्हें यथासंभव बदलने और सुधारने के साथ-साथ उन्हें सुरक्षित रखने का प्रशंसनीय कार्य किया। यद्यपि बेबिलोनियन सभ्यता असीरियन सभ्यता की नकल करती थी, लेकिन यह नकल आसन्न थी, अंधानुकरण नहीं। असीरियनों ने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपने नवीन अनुभवों और खोजों से पूरी दुनिया को बदल दिया। इतिहास में असीरियनों ने ही सैनिक बल के बल पर एक बहुत बड़ा साम्राज्य बनाने की संभावना को साकार किया था। असीरियन युग, पारसीक और यूनानियों के लिए प्रेरणास्रोत रहा, प्राचीनतम एशियाई वास्तुकला था।

कैल्डियन पुनर्जागरण (Caldian Renaissance)

असीरियनों की बढ़ती शक्ति ने बेबीलोनियन सभ्यता को प्रभावित करना पड़ा, लेकिन 612 ईसापूर्व के आसपास सेमेटिक जाति की एक शाखा कैल्डियनों ने इसे अंतिम रूप से स्वतंत्र करने में सफलता हासिल की। बेबीलोलियन सभ्यता का पुनर्जागरण सेमेटिक जाति की कैल्डियन शाखा ने किया था, इसलिए इसे कैल्डियन पुनर्जागरण कहा जाता है।

कैडिल्यन लोगों ने अपनी सभ्यता बनाई, लेकिन मजबूत शासक नहीं थे, इसलिए यह धीरे-धीरे कमजोर होती गई। अंततः 539 ईसापूर्व में पारसीक साइरस की विजय से मेसोपोटामिया की सभ्यता समाप्त हो गई।

मेसोपोटामिया सभ्यता की विशेषताएँ  (Features of Mesopotamian Civilization)

हम्मूराबी की विधि संहिता: बेबीलोन के सम्राट हम्मूराबी ने अपने लोगों के लिए सबसे प्राचीन विधि संहिता बनाई। 8 फुट ऊँची पत्थर की शिला पर सम्राट ने इसे उत्कीर्ण करवाया था। हम्मूराबी का दंड-विषयक सिद्धांत लगभग उसी प्रकार था।

सामाजिक व्यवहार: मेसोपोटामिया सभ्यता में राजा देवताओं का प्रतिनिधि था। राजतंत्र की प्रतिष्ठा से पूर्व शासक पुरोहित परिवार और राजा के बाद दूसरा स्थान था। व्यापारी, जमींदार और दुकानदार मध्यम वर्ग में आते थे। दास समाज में सबसे नीचे थे। सैन्य बल लगातार युद्धों के कारण समाज में महत्वपूर्ण थे।

खेती और पशुपालन: मेसोपोटामिया में लोगों का मुख्य काम खेती था। वहाँ के किसान हलों से जमीन जुताते थे और बीज कीप से बोते थे। खेतों को सिंचाई करने के लिए नदियों से बाढ़ का पानी नहर तक ले जाकर बड़े-बड़े बाँधों में इकट्ठा करते थे। हलों से जुताई के लिए मवेशी काम में लेते थे और पशुओं का प्रजनन भी किया जाने लगा था। इसी सभ्यता ने कुम्हार के चाक का प्रयोग किया था।

व्यापार और अर्थव्यवस्था: मेसोपोटामिया की सभ्यता मुख्य रूप से व्यावसायिक थी। देवता का मंदिर वहाँ एक धार्मिक स्थान ही नहीं, बल्कि एक व्यापारिक स्थान भी था। यहीं पहली बैंकिंग व्यवस्था विकसित हुई। मेसोपोटामिया भारत की सिंधु सभ्यता से व्यापारिक रूप से जुड़ा था।

धार्मिक विश्वास: मेसोपोटामिया लोगों ने कई देवी-देवताओं को पूजा किया था। प्रत्येक नगर में एक देवता था जो उसे बचाता था। "जिगुरात" शब्द का अर्थ है स्वर्ग की पहाड़ी। जिगुरात नगर का निर्माण कृत्रिम पहाड़ी पर हुआ था। उर के जिगुरात की ऊँचाई 20 मीटर से अधिक थी और तीन मंजिलें थीं। मेसोपोटामिया के लोगों का ध्यान दूसरे जगहों की परेशानियों पर नहीं था, बल्कि अपने स्थानीय जीवन की सामान्य समस्याओं पर था। उनके पुरोहित भी इस व्यवसाय में शामिल हो गए।

ज्ञान-विज्ञान: मेसोपोटामिया के लोगों ने विज्ञान में बहुत कुछ किया है। खगोल विज्ञान में उन्होंने काफी प्रगति की थी। उनके पास सूर्योदय, सूर्यास्त और चंद्रोदय का ठीक समय था। उनका दिन और रात का समय हिसाब लगाया गया था, और प्रत्येक दिन को चौबीस घंटे में बाँटा गया था। मेसोपोटामिया में ही साठ सैकंड का मिनट और साठ मिनट का एक घंटे का पहला विभाजन हुआ था। इनके पास भी चंद्र कलैंडर था।

इन्होंने रेखागणित वृत को 360 डिग्री में विभाजित करना शुरू किया। इस प्रकार मेसोपोटामिया के लोग विज्ञान और गणित की उन्नत परंपराओं से परिचित थे। पाइथोगोरस प्रमेय भी मेसोपोटामिया की देन है।

निर्माण कला: मेहराब स्थापत्य कला में एक बड़ी खोज थी। मेसोपोटामिया के कलाकारों ने भी मेहराब बनाया। हेंगिंग गार्डेन, जिसे नेबुकद्रेज्जर ने अपनी मीडियन रानी के लिए बनाया था, विश्व के सात आश्चर्यों में गिना जाता है।

कील लिपि: मेसोपोटामिया की पहली लिपि सुमेर काल में विकसित हुई। सुमेरियन व्यापारियों ने लेखन कला, जिसे क्यूनीफोर्म या कीलाक्षर लिपि कहते हैं, बनाने के लिए कील जैसे चिन्हों का उपयोग किया। ब्रिटिश अफसर हेनरी रॉलिंसन ने इसे क्यूनीफार्म लिपि में पढ़ा था।

सिंधु घाटी सभ्यता: ऐतिहासिक प्रमाणों से पता चलता है कि मेसोपोटामिया और सिंधु घाटी की सभ्यताएं समकालीन थीं और सुमेर, बेबीलोन और सिंधु प्रदेश से समुद्री मार्ग से व्यापार करते थे। इसलिए दोनों में कई समानताएँ हैं।

मेसोपोटामिया में जीवन और परंपराएँ सिंधु घाटी की तरह थीं। दोनों सभ्यताओं में लोग मूर्तिपूजक और आस्तिक थे। मंदिरों में देवताओं की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा की जाती थी।

दोनों सभ्यताओं में चंद्रमा की गति पर आधारित काल-गणना थी और बारह ही महीनों की संख्या थी। पूर्णिमा, अधिकमास और अष्टमी भी बड़ी तिथियाँ मानी जाती थीं।

सिंधु से मेसोपोटामिया को निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में सूती वस्त्र, पशु-पक्षी, मशाले, इमारती लकड़ी और हाथीदांत शामिल रहे होंगे। मेसोपोटामिया के नगरों (उर, किश, लगश, निष्पुर, टेल अस्मर, टेपे, गावरा, हमा) से सिंधु सभ्यता की लगभग एक दर्जन मुहरें मिली हैं।

मेसेपोटामिया से सिंधु सभ्यता के नगरों द्वारा आयात की गई वस्तुओं में मोहनजोदाड़ो से प्राप्त हरिताभ रंग का क्लोराइट पत्थर का टुकड़ा शामिल है, जिस पर चटाई की तरह डिजाइन बनी है।

दिलमुन के अभिलेखों से पता चलता है कि वह चाँदी, सोना, लाजवर्द, माणिक्य के मनके, हाथीदाँत, की कंघी, पशु-पक्षी, आभूषण आदि आयात करता था। Dilmun फ़ारस की खाड़ी के बहरीन द्वीप से नामित है। Дилमुन सैंधव मेसोपोटामिया और व्यापारिक केंद्रों के साथ एक मध्यस्थ बंदरगाह था।

मेसोपाटामिया में सिंधु सभ्यता से जुड़े अभिलेखों और मुहरों में "मेलुहा" का ज़िक्र है। ‘उर’ मेसोपोटामिया में पहुंचने के लिए एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था। लोथल में फ़ारस की मुहरें मिली हैं। इस बंदरगाह पर जहाज़ मिस्र और मेसोपोटामिया से आते थे। उन्हें मध्य एशिया के साथ व्यापार करने के लिए उत्तरी अफ़गानिस्तान में एक वाणिज्यिक उपनिवेश बनाया गया।

हड़प्पा समुदाय के शहरी लोगों में आर्थिक विषमता लगभग वर्गभेद जैसी थी। व्हीलर का मानना है कि हड़प्पा और मेसोपोटामिया के लोग भी दास व्यापार करते थे।


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