अध्याय 1 : क्या ,कब, कहाँ और कैसे
लोग कहाँ रहते थे :-
- नर्मदा (मध्य प्रदेश) में कई लाख वर्ष पहले से लोग रह रहे थे. वे जानवरों का शिकार करते थे और जड़ों, फलों और जंगली उत्पादों पर निर्भर थे।
उत्तर-पश्चिम सुलेमान व् किरथर पहाड़ियाँ (पाक- अफगनिस्तान सीमा ) :-
- इस स्थान पर आठ वर्ष पूर्व स्त्री -पुरषों ने सबसे पहले गेंहूँ और जौ फसलों को अपनाया आरंभ किया तथा भेड़ , बकरी , गाय , बैल को पालतू बनाया और गाँवो में रहते थे लोग
उत्तर-पूर्व में गारो तथा मध्य भारत में विंध्य पहाड़ियाँ :-
- गारो -असम विंध्य पहाड़ियाँ – मध्य प्रदेश यहाँ पर कृषि का विकाश हुआ , सर्वप्रथम चावल विंध्य के उत्तर में उपजाया गया था
सिंध व सहायक नदी :-
- 4700 वर्ष पूर्व आंरभिक नगर फल , फुले , गंगा व तटवर्ती इलाके में 2500 वर्ष पूर्व नगरों का विकास
- गंगा व सोन नदी – गंगा के दक्षिण में प्रचीन काल में ‘ मगध की स्थापना ‘
देश का नाम :–
- ‘इण्डिया ‘ शब्द इंडस से निकला है जिसे संस्कृत में सिंधु कहा जाता है ईरान और यूनान वासियों ने सिंधु को हिंडोस अथवा इंडोस कहा और इस नदी के पूर्व के भूमि प्रदेश को इण्डिया कहा
- भारत नाम का प्रयोग उत्तर-पश्चिम में रहने वाले लोगो के एक समूह के लिए किया जाता जाता था इसका वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है
अतीत के बारे में कैसे जानें :-
- पाण्डुलिपि – ये पुस्तकें हाथ से लिखी होती थी (ताड के पत्तो व भुर्ज पेड़ का छाल से निर्मित ) यह भोजपत्र पर लिखी जाती थी
- अंग्रेजी में इसके लिए ‘ मैन्यूसिक्रप्ट ” शब्द लैटिन शब्द ” मेनू ” जिसका अर्थ हाथ है – इन पाण्डुलिपि में , धार्मिक मान्यता , व्यवहार , राजाओ के जीवन , औषधियो तथा विज्ञान आदि सभी प्रकार के विषय की चर्चा मिलती है
- यह संकृत प्राकृत व तमिल भाषा में लिखे है – प्राकृत आम लोगो की भाषा थी
अभिलेख :–
- अतीत के बारे में जानने का एक ओर महत्वपूर्ण स्रोत अभिलेख है यह कठोर सतह पर उत्क्रीर्ण किए जाते है
पुरातत्वविद :-
- वे व्यक्ति जो अतीत में बनी वस्तुओं का अध्याय करते है जैसे – पत्थर व ईट से बनी इमारते , अवशेष , चित्र , मुर्तिया इत्यादि
इतिहासकार :- जो लोग अतीत का अध्ययन करते है तिथियों का अर्थ
- BC – बिफ़ोर क्राश्स्त – ई.पू – ईसा के जन्म से पहले
- AD – एनो डॉमिनी – ई. – ईसा मसीह के जन्म के बाद
- कृषि का आरंभ – 8000 वर्ष पूर्व
- सिंधु सभ्यता के प्रथम नगर – 4700 वर्ष पूर्व
- गंगा घाटी के नगर (मगध)- 2500 वर्ष पूर्व
अध्याय 2 : आखेट – खाद्य संग्रह से भोजन उत्पादन तक
आंरभिक नगर :-
- आखेटक – खाद्य संग्राहक – यह इस महाद्वीप में 20 लाख वर्ष पहले रहते थे इन्हे यह नाम भोजन का इंतजाम करने की विधि के आधार पर दिया गया है भोजन ( जनवरो का शिकार , मच्छलियाँ , चिड़ियाँ , फल -फूल , दाने , पौधों -पतियाँ , अंडे इत्यादि।
एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने का कारण :-
- भोजन की तलाश में इन्हे एक स्थान से दूसरे स्थान जाना पड़ता था
- चारा की तलाश में या जानवरों का शिकार करते थे हुए एक स्थान से दूसरे स्थान
- अलग-अलग मौसम में फल की तलाश पानी की तलाश में
- इन लोगो ने काम के लिए पत्थरो।, लकड़ियों और हड्डियों के औजार बनाए थे।
पुरास्थल :-
- उस स्थान को कहते है जहाँ औजार , बर्तन और इमारतें जैसी वस्तुओं के अवशेष मिलते है
भीमबेटका :-
- मध्य प्रदेश इस पुरास्थल पर गुफाएँ व कंदराएँ मिली है जहाँ लोग रहते थे नर्मदा घाटी के पास स्थित है
कुरनूल गुफा :–
- आंध्र प्रदेश यहाँ राख के अवशेष मिले है। इसका इस्तेमाल प्रकाश , मांस , भुनने व् खतरनाक जानवरो को दूर भगाने के लिए होता था
- लगभग 12000 साल पहले जलवायु में बड़े बदला आए और इसके परिणामस्वरूप कई घास वाले मैदान बनने लगे और हिरण।, बारहसिंघा , भेड़ , बकरी , गाय जैसे जानवरो की संख्या में बढ़ोतरी हुई और मछली महत्वपूर्ण स्त्रोत बना
प्रारंभिक पशुपालक व कृषक के साक्ष्य
1. बुर्जहोम – कश्मीर
2. मेहरगढ़ – पाकिस्तान
3. चिरांद – बिहार
4. कोल्डिहवा – मध्य प्रदेश
5. दाओजली – असम
बुर्जहोम :-
- (वर्तमान कश्मीर में ) लोग गड्ढे के निचे घर बनाते थे जिन्हे गर्तवास कहा जाता है।
मेहरगढ़ :-
- मेहरगढ़ में बस्ती का आरंभ 8000 साल पहले यह स्थान ईरान जाने वाले रस्ते में महत्वपूर्ण था यह बोलन दर्रे के पस एक हरा भरा समतल स्थान है।
- इस इलाके में सबसे पहले जौ , गेंहूँ , भेड़ , बकरी पलना सीखा – यहाँ चौकोर तथा आयताकार घरो के अवशेष भी मिले है।
- मेहरगढ़ में कब्रों के स्थ सामान भी रखे जाते थे एक कब्र में मानव के साथ एक बकरी भी दफनाई गई है।
- पुरापाषाण :- यह दो शब्दों ” पूरा ” यानि ‘ प्राचीन ‘ पाषाण यानि ‘ पत्थर ‘ से बना है – इसे तीन भागो में बाँट सकते है। ‘ आरंभिक ‘,’ मध्य ‘,’ एवं उत्तर ‘ पुरापाषाण युग
- पुरापाषाण काल 20,00000 -12,000 – आरंभिक काल को कहते है।
- मध्यपाषाण काल 12,000 -10,000 –इस काल पर्यावरणीय बदलाव मिलते है।
- नवपाषाण 10,000 साल पहले – अगले युग की शुरुआत
अध्याय 3 : आंरभिक नगर
हड़प्पा की कहनी :-
- लगभग 150 साल पहले जब पंजाब में पहली बार रेलवे लाइनें बिछाई जा रही थीं , तो इस काम में जुटे इंजीनियरों को अचानक हड़प्पा पुरास्थल मिला , जो आधुनिक पाकिस्तान में है। यह सभ्यता सिंघु नदी के निकट विकसित हुई। यह सभ्यता 4700 साल पहले विकसित हुई।
हड़प्पाई नगरों की विशेषता :-
- इन नगरों को हम दो या उससे ज्यादा हिस्सों में बाँट सकते है
1. नगर दुर्ग – यह पश्चिम भाग था और यह ऊँचाई पर बना था तथा अपेक्षाकृत छोटा था
2. निचला -नगर – यह पूर्वी भाग था और यह निचले हिस्से पर बना था यह बड़ा भाग था।
दोनों हिस्सों की चारदीवारी पक्की ईट की बनाई गई थी
मोहनजोदड़ो :-
- इस नगर में विशाल स्नानागार मिला यह स्नानागार ईट व प्लास्टर से बनाया गया था इसमें पानी का रिसाव रोकने के लिए प्लास्टर लिए प्लास्टर के ऊपर चॉकोल की परत चढ़ाई गई थी। इस सरोवर में दो तरफ़ से उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनाई गयी थीऔर चारों ओर कमरे बनाए गए थे। कालीबंगा और लोथल से अग्निकुंड मिले है। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से भंडार ग्रह मिले है। भवन , नाले , और
भवन , नाले , और सड़कें :-
- इन नगरों के घर आमतौर पर एक या दो मंजिले होते थे। घर के आँगन के चारों ओर कमरे बनाए जाते थे। अधिकांश घरो में एक अलग स्नानघर होता था और कुछ घरों में कुएँ भी होते थे। कई नगरों में ढके हुए नाले थे। जल निकासी प्रणाली काफी विकसित थी। घर , नाले और सड़को का निर्माण योजनाबद्ध तरिके से किया गया था।
नगरीय जीवन :-
- हड़प्पा के नगरों में बड़ी हलचल रहा करती होगी। नगरों में लोग निर्माण कार्य में संलगन थे तथा यहॉँ पर धातु , बहुमूल्य पत्थर , मनके , सोने , चाँदी से बने आभूषण प्राप्त हुए है। लिपिक – कुछ लोग मुहरों पर लिखते थे। कुछ लोग शिल्पकर थे ताँबे और काँसे – औजार , हथियार , घने बर्तन बनाए जाते थे। चाँदी और सोने – गहने एवं बर्तन बाट – चर्ट पत्थर मनके – कार्निलियन पत्थर हड़प्पा के लोग पत्थर की मुहरे बनाते थे
- फेयॉन्स – बालू या स्फटिक पत्थरो के चूर्ण को गोंद में मिलाकर तैयार किया गया पदार्थ।
कच्चा मॉल -
- जो प्राकृतिक रूप से मिलते है या फिर किसान या पशुपालक उनका उत्पादन करते है। मेहरगढ़ – 7000 साल पहले कपास की खेती होती थी।
कच्चे माल का आयत :-
- ताँबा – राजस्थान और ओमान से, सोना – कर्नाटक, टिन – ईरान , बहुमूल्य पत्थर – गुजरात ईरान अफगनिस्तान अफगनिस्तान बहुमूल्यपत्थर
भोजन :-
- हड़प्पाई लोग जानवर पालते थे और अनाज उगते थे – यहाँ लोग गेंहूँ , जौ , दाल , मटर , धन , तिल और सरसों उगाते थे – जुताई के लिए हल का प्रयोग होता था और सिंचाई के लिए जल संचय किया जाता होगा।
हड़प्पा के लोग –
- गाय , भैंस , भेड़ ,बकरियाँ पालते थे तथा बेर को इकट्ठा करना मच्छलियाँ पकड़ना तथा हिरण जैसे जानवरो का शिकार करते थे।
धौलावीरा :-
- ( गुजरात )खदिर बेट के किनारे बसा था। इस नगर को तीन भागों में बाँटा गया था हर हिस्से के चारो और पत्थर की ऊँची दीवारे बनाई गई थी। इसमें बड़े बड़े प्रवेश द्वार थे एक खुला मैदान था जिसमे सार्वजानिक कार्यक्रम आयोजन किये जाते होंगे इस स्थान पर हड़प्पा लिपि के बड़े बड़े अक्षर को पत्थर में खुदा पाया गया है।
लोथल :-
- खम्भात की खड़ी में मिलने वाली साबरमती उपनदी के किनारे बसा था. यहाँ शंख , मुहरे , मुद्रांकन या मुहरबंदी , भंडार गृह मिले है
सभ्यता के अंत के कारण :-
1. नदियाँ सुख गई
2. जंगलो का विनाश
3. बाढ़ आ गई
4. चरागाह समाप्त हो गए
5. शासको का नियंत्रण समाप्त हो गया युद्व इत्यादि।
अध्याय 4 : क्या बताती हैं किताबें और कब्रें
प्राचीनतम ग्रंथ वेद :- वेद का शब्दिक अर्थ – ज्ञान वेदो का संकलन कृष्ण द्वैपायन (वेदव्यास) ने किया
वेद चार है – ऋग्वेद , सामवेद , यजुर्वेद , अथर्वेद
ऋग्वेद :-
- यह सबसे पुराना वेद है, ऋग्वेद की रचना 3500 साल पहले हुई। ऋग्वेद में एक हज़ार से ज़्यादा प्रार्थनाएँ हैं जिन्हें , सूक्त कहा गया है। इसमें 10 मण्डल , 1028 सूक्त , 10600 मंत्र है।
- ऋग्वेद की भाषा प्राकृ संस्कृत या वैदिक संस्कृत है। इसमें तीन देवता महत्वपूर्ण है – अग्नि , इन्द्र और सोम (पौधा) भूर्ज वृक्ष :- 150 वर्ष पहले ऋग्वेद भूर्ज वृक्ष की छाल पर लिखा गया यह पाण्डुलिपि पुणे , महाराष्ट्र के एक पुस्कालय में सुरक्षित है।
- प्रार्थनाएँ :- ऋग्वेद में मवेशियों ( खासकर पुत्रों ) और घोड़ों की प्राप्ति , रथ खींचने , लड़ाईयाँ के लिए अनेक प्रार्थनाएँ हैं । ऋग्वेद में अनेक नदियों का जिक्र है जैसे : व्यास , सतलुज , सरस्वती , सिंधु , तथा गंगा , यमुना का बस एक बार जिक्र मिलता है। लोगों का वर्गीकरण :- काम , भाषा , परिवार या समुदाय , निवास स्थान या सांस्कृतिक परंपरा के आधार पर किया जाता रहा है।
लोगो के लिए शब्द :
- लोगो का वर्गीकरण काम, भाषा , परिवार या समुदाय निवास स्थान या संस्कृति परंपरा के आधार पर किया जाता रहा है
काम के आधार पर : ऐसे दो समहू थे समाज में
- पुरोहित : जिन्हे कभी कभी ब्राह्मण कहा जाता था यह यघ व अनुष्ठान कार्य करते थे
- राजा : यह आधुनिक समय जैसे नहीं थे ये न महल में रहते थे न राजधानिया में न ही सेना रखते न कर वसूलते और उनकी मृत्यु के बाद उनका बेटा अपने आप शासक नहीं बनता था।
जनता व पुरे समाज के लिए :
- जन इसका प्रयोग आज भी होता है। दूसरा शब्द था विश जिसका वैश्य शब्द निकला है।
- जिन लोगो ने प्रार्थनाओ की रचना की वे खुद को आर्य कहते थे व विरोधियो को दास या दस्यु कहते थे
समाज मुख्य रूप से 4 वर्गों में बना हुआ था ब्राह्मण यज्ञ और अनुष्ठान वैश्य – व्यापारी श्रत्रिय – सेना शूद्र – दास
महापाषाण :-
- 3000 साल पहले शुरू हुई। ये शिलाखण्ड महापाषाण ( महा : बड़ा , पाषाण : पत्थर ) ये पत्थर दफ़न करने की जगह पर लोगों द्वारा बड़े करीने से लगाए गए थे यह प्रथा दक्कन , दक्षिण भारत , उत्तर -पूर्वी भारत और कश्मीर में प्रचलित थी। मृतकों के साथ लोहे के औज़ार , हथियार , पत्थर , सोने के गहने , घोड़े के कंकाल। महापाषाण कल 3000 साल पहले लोहे क प्रयोग आरम्भ हो गया।
इनामगाँव :-
- 3600 -2700 साल पहले भीमा की सहायक नदी घोड़ के किनारे एक जगह है . यहाँ वयस्क लोगों को प्राय: गड्डे में सीधा लिटा कर दफ़नाया जाता था। उनका सिर उत्तर की और होता था कई बार उन्हें घर के अंदर ही दफ़नाया जाता था। खाना खाने और पानी पीने का बर्तन शव के पास रख दिए जाते थे। इनामगाँव में पुरात्तवविदों को गेंहूँ , चावल , दाल , बाजरा , मटर और तिल के बीज मिले हैं। जानवरों की हड्डियाँ मिली गाय , बैल , भैंस , बकरी , भेड़ , कुत्ता , घोड़ा। हिरण सूअर , चिड़ियाँ , कछुआ , केकड़ा और मछली की हड्डियाँ भी पाई गई हैं।
अध्याय 5 : राज्य राजा और एक प्राचीन गणराज्य
3000 साल पहले राजा बनने की प्रकिया में कुछ बदलाव आए।अश्वमेघ यज्ञ आयोजित करके राजा के रूप में प्रतिष्ठित हो गए।
शासक :
- 3000 साल पहले राजा बनने की प्रकिया में कुछ बदलाव आए।अश्वमेघ यज्ञ आयोजित करके राजा के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। अश्वमेघ यज्ञ करने वाला राजा बहुत शक्तिशाली माना जाता था। महायज्ञों को करने वाले राजा अब जन के राजा न होकर जनपदों के राजा माने जाने लगा। जनपद का शब्दिक अर्थ जन के बसने की जगह होता है।
अश्वमेघ यज्ञ :
- इस यज्ञ में रक घोड़े को राजा के लोगो की देखरेख में स्वतंत्र विचरण के लिए छोड़ दिया जाता था इस घोड़े को किसी दूसरे राजा ने रोका तो उसे वहाँ अश्वमेघ यज्ञ करने वाले राजा से युद्ध करना होगा अगर उसे जाने दिया तो अश्वमेघ यज्ञ वाला राजा अधिक शक्तिशाली है। यज्ञ पुरोहित द्वारा संपन्न होता था तथा विभिन राजा को आमंत्रित किया जाता था।
उत्तर वैदिक ग्रन्थ : जो ग्रन्थ ऋगवेद के बाद रचे गए जैसे – सामवेद, यजुर्वेद, अथर्वेद, उपनिषद।
वर्ण :- पुरोहितों ने लोगों को चार वर्गों में विभाजित
ब्राह्मण | वेदों का अध्ययन-अध्यापन और यज्ञ करना |
क्षत्रिय | युद्ध करना और लोगों की रक्षा करना |
वैश्य | कृषक , पशुपालक , और व्यापारी |
शूद्र | तीनों वर्णों की सेवा करना |
जनपद :-
- जनपद का शब्दिक अर्थ जन के बसने की जगह होता है। महायज्ञों को करने वाले राजा अब जन के राजा न होकर जनपदों के राजा माने जाने लगे। इन में लोग झोपड़ियों में रहते थे और मवेशी तथा जानवरो को पालते थे चावल, गेहू ,धान, जो, दाल, तिल, सरसो उगते थे कुछ जनपद है।
दिल्ली | पुराना किला |
उत्तर प्रदेश | हस्तिनापुर |
एटा | अतरंजीखेड़ा |
महाजनपद :-
- 2500 साल पहले , कुछ जनपद अधिक महत्वपूर्ण हो गए। इन्हे महाजनपद कहा जाने लगा। अधिकतर महाजनपदों की एक राजधानी होती थी। कई राजधानियों में किलेबंदी की गई थी अर्थात इनके चारों ओर विशाल , ऊँची और प्रभावशाली दीवार खड़ी कर अपनी समृद्धि और शक्ति का प्रदर्शन भी करते थे इस तरह क्षेत्रों पर नियत्रंण रखना भी सरल हो गया
कर :-
- महाजनपदों के राजा विशाल किले बनवाते थे और बड़ी सेना रखते थे इसलिए अब नियमित रूप से कर वसूलने लगे। – अधकांश लोग कृषक ही थे प्राय: फसल का उपज का 1/6 हिस्सा कर लेते थे। –करीगरों के ऊपर भी कर लगाए गए श्रमिकों को राजा के लिए महीने में एक दिन काम करना पड़ता था
- पशुपालक :- जानवरों या उनके उत्पाद के रूप में कर देना पड़ता था।
- व्यपारियों :- सामान खरीदने-बेचने पर भी कर देना पड़ता था।
- आखेटकों :- जंगल से प्राप्त वस्तुएँ देनी होती थीं।
कृषि में परिवर्तन :- इस युग में कृषि के क्षेत्र में दो बड़े परिवर्तन आए
- हल के फाल अब लोहे के बनने लगे जिससे अब कठोर जमीन को आसानी से जोता जा सकता था इससे फ़सलों की उपज बढ़ गई।
- लोगो ने धान के पौधों का रोपण शुरू किया जिससे अब पहले से की तुलना में बहुत पौधे जीवित रह जाते थे , इसलिए पैदावार भी ज़्यादा होने लगी। सूक्ष्म- निरीक्षण
मगध :-
- लगभग दो सौ सालों के भीतर मगध सबसे महत्वपूर्ण जनपद बन गया। गंगा और सोन जैसी नदियाँ मगध से होकर बहती थीं। मगध का एक हिस्सा जंगलो से भरा था। इन जंगलो में रहने वाले हाथियों को पकड़ कर उन्हें प्रशिक्षित कर सेना के काम में लगाया जाता था।
मगध :- बिम्बिसार मगध का शक्तिशली शासक था आजातशत्रु राजगृह में स्तूप का निर्माण। करवाया।
महापदमनंद :-
- एक और महत्वपूर्ण शासक थे। उन्होंने अपने नियंत्रण का क्षेत्र इस उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग तक फैला लिया था। बिहार में राजगृह (आधुनिक राजगीर) कई सालों तक मगध की राजधानी बनी रही और बाद में पाटलिपुत्र ( आज का पटना ) को राजधानी बनया गया
वज्जि :
- इसकी राजधानी वैशाली थी यह मगध के समीप था यहां शासन व्यवस्था गण /संघ थी. इन गण /संघ में कई शासक होते थे कभी कभी लोग एक साथ शासन करते थे वे सभी राजा होते थे
- 2300 साल पहले मेसीडोनिया का राजा सिकन्दर विश्व-विजय करना चाहता था। वह मिस्र और पश्चिमी एशिया के कुछ राज्यों को जीतता हुआ भरतीय उपमहाद्वीप में व्यास नदी के किनारे तक पहुँच गया। जब उसने मगध की और कूच करना चाहा , तो उसके सिपाहियों ने इंकार कर दिया। वे इस बात से भयभीत थे की भारत के शासकों के पास पैदल , रथ हाथियों की बहुत बड़ी सेना थी।
अध्याय 6 : नए प्रश्न नए विचार
गौतम बुद्ध –
- बचपन का नाम – सिद्धार्थ -जन्म स्थान -563 ई.पू लुम्बिनी ( -कुल – शाक्य, प्रथम उपदेश – कुशीनगर, ज्ञान प्रप्ति – बोधगया (35 वर्ष )-जीवन क अंत – 483 ई.पू कुशीनगर,
ज्ञान प्राप्ति :-
- बुजुर्ग , बीमार , मृत , साधु जिसके कारण 29 वर्ष की आयु में ज्ञान की खोज में उन्होंने घर के सुखों को छोड़ दिया। अनेक वर्षो तक भ्रमण करते रहे। 35 वर्ष की आयु बोधगया में निरजंना नदी के तट पर पीपल के वृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद वे बुद्ध के रूप में जाने गए। पहली बार सारनाथ में अपना उपदेश कौडिन्य व उनके सथियो को दिया।
- गौतम बुद्ध के शिष्य – आनन्द और उपालि थे बुद्ध ने अपनी शिक्षा सामान्य लोगों को प्राकृत भाषा में दी बुद्ध ने अंतिम लक्ष्य ” निर्वाण ” की प्रप्ति बताते है। सारनाथ में स्तूप का निर्माण किया गया।
प्रमुख शिक्षा –
1. जीवन कष्टों व दुखो से भरा है और यह इच्छा व लालसाओं के कारण होता है।
2. इस लालसा को उन्होंने तृष्णा कहा है
3. इसका समाधान आत्मसयम है , हमारे कर्म के परिणाम चाहे अच्छे हो या बुरे हमारे वर्तमान जीवन के साथ साथ बाद के जीवन को भी प्रभावित करते है।
बौद्ध ग्रन्थ
विनयपिटक – जीवन की घटनाएँ। सुतपिटक– संघ के नियम। अभिहम्मपिटक – आध्यातिमक विचार
उपनिषद –
- यह उत्तर वैदिक ग्रन्थ था तथा उपनिषद का अर्थ होता है “गुरु के समीप बैठना “ यह बातचीत का संकलन है। इसके अंतर्गत विभिन्न विचारको चिंतको के द्वारा मृत्यु के बाद के खोज में ढूंढे गए उत्तर है।
जैन धर्म
- जैन शब्द संस्कृत के जिन शब्दों से बना है जिसका अर्थ ” विजेता ” होता है। महावीर जैन का जन्म – 540 ई.पू कुण्डग्राम वैशाली (बिहार) में हुआ था उन्होंने जम्भिक ग्राम में प्रथम उपदेश – राजगृह में दिया था जीवन क अंत – 468 ई.पू
- पावापुरी राजगृह बचपन का नाम था – वर्द्धमान महावीर जैन धर्म के संस्थापक ऋषभदेव थे और 24 वें महावीर जैन यह वज्जि संघ के लिच्छवि कुल के क्षत्रिय राजकुमार थे। 30 वर्ष की आयु में उन्होंने घर छोड़ दिया।
- बारह वर्ष तक उन्होंने कठिन व एकाकी जीवन व्यतीत किया। इसके बाद उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। महावीर ने अपनी शिक्षा प्राकृत में दी। त्रिरत्त्न :- सम्यक घ्यान , सम्यक दर्शन , सम्यक आचारण जैन दिगम्बर और स्वेताम्बर
जैन धर्म की शिक्षाएँ
- अहिंसा के नियम का कड़ाई से पालन किसी भी जीव की हत्या नहीं करनी चाहिए
- भोजन के लिए भिक्षा मांग कर सादा जीवन बिताना चोरी नहीं करना ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है
- मुख्यता व्यापारियों ने जैन धर्म का समर्थन किया
- कई शताब्दियों तक इनकी शिक्षाएं मौखिक रही परंतु पंद्रह सौ वर्ष पूर्व गुजरात में वल्लभी नामक स्थान पर लिखी गई थी।
संघ :-
- महावीर तथा बुद्ध दोनों का ही मानना था की घर का त्याग करने पर ही सच्चे ज्ञान की प्रप्ति हो सकती है। विनयपिटक में संघ में रहने वाले भिक्षुओ के लिए नियम बनाए गए थे। संघ में ब्राह्मण , क्षत्रिय , व्यापारी , मजदूर , प्रवेश ले सकते थे।
विहार :–
- जैन तथा बौद्ध भिक्खु पुरे साल एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते हुए उपदेश दिया करते थे।परंतु वर्षा ऋतु में यह संभव नहीं था इसलिए इन्हें निवास स्थान की आवश्यकता पड़ी तो उनके अनुयायियों ने कुछ उद्यान बनाएं विहार दान द्वारा प्राप्त भूमि पर बनाए गए थे इनमें लोग भोजन दबा वस्त्र लेकर आते थे और उसके बदले में उन्हें उपदेश दिया जाता था
आश्रम व्यवस्था –
- जैन बौद्ध धर्म जब इतने फैल रहे थे तब ब्राह्मण ने आश्रम व्यवस्था का विकास किया
- ब्रह्मचार्य – ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य से यह आशा की जाती थी वह सादा जीवन बिताएं तथा वेदों का अध्ययन करें
- गृहस्थ – विवाह करने के पश्चात इस आश्रम में प्रवेश हो जाता था
- वानप्रस्थ – जंगल में रहकर साधना करना
- सन्यास – सब त्याग कर सन्यासी बन जाए
अध्याय 7 : एक अनोखा सम्राट जिसने युद्ध का त्याग किया
मौर्य साम्राज्य :-
- मौर्य साम्राज्य की स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य ने 2300 साल पहले की थी। चाणक्य या कौटिल्य ने चन्द्रगुप्त की सहायता की इस साम्राज्य में तथा वह चन्द्रगुप्त के मंत्री भी थे चाणक्य ने अर्थशास्त्र की रचना की है। नगरों में व्यपारी ,सरकारी अधिकारी और शिल्पकार रहा करते थे। गांव में किसान पशुपालक थे मध्य भारत के ज्यादातर इलाके जंगलो में संग्राहण और शिकार करके जीविका चलाते थे मैगास्थनीज एक राजदूत बनकर आया था जो यूनानी राजा सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था इन की प्रसिद्ध पुस्तक है इंडिका
साम्राज्य की राजधानी
- पाटलिपुत्र
- उज्जैन
- तक्षिला
प्रशासन –
- साम्राज्य बड़ा होने के कारण अलग-अलग हिस्सों पर अलग-अलग ढंग से शासन किया जाता था
पाटलिपुत्र –
- इसके आसपास के इलाकों पर सम्राट का सीधा नियंत्रण था इसका अर्थ हुआ गांव व शहरों के किसान, पशुपालक, शिल्पकार, व्यापारियों से कर इकट्ठा करने के लिए राजा अधिकारियों की नियुक्ति करता था
तक्षशिला उज्जैन –
- छोटे क्षेत्रों या प्रांतों पर इन स्थानों से नियंत्रण रखा जाता था तथा कुछ हद तक पाटलिपुत्र से इन पर नियंत्रण रखा जाता था तथा इन स्थानों पर राजकुमारों को राज्यपाल बनाकर भेजा जाता था
- अन्य इलाकों में सिर्फ नदियों और मार्गों पर नियंत्रण रखा जाता था तथा वहां से उन्हें संसाधन भेंट के रूप में मिलते थे उदाहरण के लिए उत्तर-पश्चिम से कंबल।, दक्षिण भारत से सोना कीमती पत्थर
अशोक सम्राट :-
- अशोक मौर्य वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक थे। वह ऐसे शासक थे जिन्होंने अभिलेखों द्वारा जनता तक अपने संदेश पहुँचाने की कोशिश की अशोक के ज़्यादातर अभिलेख प्राकृत भाषा और ब्रह्मी लिपि में हैं।
अशोक का कलिंग युद्ध :-
- कलिंग तटवर्ती उड़ीसा का प्राचीन नाम है। अशोक ने कलिंग को जीतने के लिए एक युद्ध लड़ा। लेकिन युद्धजनित हिंसा और खून-खराबा देखकर उन्हें युद्ध से वितृष्णा हो गई। उन्होंने निर्णय किया कि वे भविष्य में कभी युद्ध नहीं करेंगे।
अशोक का धम्म क्या था :-
- अशोक के धम्म में किसी देवता की पूजा अथवा किसी कर्मकांड की आवश्यकता नहीं थी उन्हें लगता था कि जैसे पिता अपने बच्चों को अच्छे व्यवहार की शिक्षा देते है वैसे ही यह उनका कर्तव्य था की अपनी प्रजा को निर्देश दें। वे बुध के उपदेशों से भी प्रेरित हुए थे। अशोक ने धम्म के विचरों को प्रसारित करने के लिए सीरिया , मिस्र , ग्रीस तथा श्रीलंका में भी दूत भेजे।
अध्याय 8 : खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर
लोहे के औज़ार और खेती :-
- उपमहाद्वीप में लोहे का प्रयोग लगभग 3000 साल पहले शुरू हुआ। महापाषाण कब्रों में लोहे के औज़ार और हथियार बड़ी संख्या में मिले हैं।जंगलों को साफ करने के लिए कुल्हाड़ियाँ , जुताई के लिए हलों के फाल का इस्तेमाल शामिल है।
कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए उठाए गए कुछ कदम :-
- कृषि के विकास में नए औज़ार तथा रोपाई महत्वपूर्ण कदम थे , उसी तरह सिंचाई के लिए नहरें , तालाब , क्त्रीम जलाशय बनाए गए।
गाँवों में कौन रहते थे :-
- इस उपमहाद्वीप के दक्षिणी तथा उत्तरी हिस्सों के अधिकांश गाँवों में कम से कम तीन तरह के लोग रहते थे।
तमिल क्षेत्र में –
- बड़े भूस्वामियों जो वेल्लला कहलाते थे। साधारण हलवाहों को उणवारऔर भूमिहीन मजदूर , दास कडैसियार और आदिमई कहलाते थे।
देश के उत्तरी हिस्से में –
ग्राम भोजक –
- गाँव का प्रधान व्यक्ति ग्राम -भोजक कहलाता था। यह गांव का प्रधान होता था और अक्सर यह एक ही परिवार के लोग इस पद पर कई पीढ़ियों तक रहते थे , यह एक अनुवांशिक पद था यह गांव का बड़ा भू स्वामी होता था अपनी जमीं पर दास , मजदुर से काम लेता था यह गांव में कर वसूलता और राजा को देता था यह कभी कभी न्यायधीश और पुलिस का काम भी करता था
स्वतंत्र कृषक –
- ग्राम-भोजकों के आलावा अन्य स्वतंत्र कृषक भी होते थे , जिन्हे गृहपति कहते थे। इन में ज्यादातर छोटे किसान ही होते थे
दास या कर्मकार –
- इनके पास स्वयं की जमींन नहीं होती थी और यह दुसरो की जमीं पर कार्य करते थे कछ लोहार , कुम्हार , बढ़ई , बुनकर , शिल्पकार तथा कुछ दास कर्मकार भी थे।
संगम साहित्य –
- तमिल की प्राचीन रचनाओं को संगम साहित्य कहते है इनकी रचना 2300 साल पहले की गई, संगम साहित्य इसलिए कहा जाता है क्योकि मदुरै के कवियों के सम्मलेन में इनका संकलन किया गया है।
आहात सिक्के :-
- सबसे पुराने आहत सिक्के थे , जो करीब 500 साल चले। चाँदी या ताँबे के सिक्को पर विभिन्न आकृतियों को आहत क्र बनाए जाने के कारण इन्हे आहत सिक्का कहा जाता था।
नगर :-
- अनेक गतिविधियों के केंद्र अक्सर कई कारणों से महत्वपूर्ण हो जाते थे , उदाहरण के लिए मथुरा 2500 साल से भी ज़्यादा समय से एक महत्वपूर्ण नगर रह है। 2000 साल पहले मथुरा कुषाणों की दूसरी राजधानी बनी। मथुरा बेहतरीन मूर्तियाँ बनाने का केंद्र था। मथुरा एक धर्मिक केंद्र बह रहा है।
शिल्प तथा शिल्पकार :-
- पुरास्थलों से शिल्पों के नमूने मिले हैं। इनमें मिट्टी के बहुत ही पतले और सुंदर बर्तन मिले , जिन्हें उत्तरी काले चमकीले पात्र कहा जाता है क्योंकि ये ज़्यादातर उपमहाद्वीप के ऊपरी भाग में मिले हैं। अनेक शिल्पकार तथा व्यापारी अपने-अपने संघ बनाने लगे थे जिन्हे श्रेणी कहते थे। काम प्रशिक्षण देना , कच्चा मॉल उपलब्ध करना , मेल का वितरण करना था।
सूक्ष्म निरीक्षण :-
- अरिकामेडु (पुदुच्चेरी) 2200 से 1900 साल पहले एक पत्तन था , यहाँ दूर-दूर से आए जहाजों से सामान उतारे जाते थे। इस स्थान से भू-मध्ये सागरिये एफोरा जैसे पात्र मिले है। इनमे तेल या शराब जैसे तरल रखे जा सकते थे।
अध्याय : 9 व्यापारी राज्य और तीर्थयात्री
व्यापर और व्यापारियों के बारे में जानकारी :-
- दक्षिण भारत सोना , मसाले , काली मिर्च तथा कीमती पत्थरों के लिए प्रसिद्ध था। काली मिर्च की रोमन साम्राज्य में इतनी माँग थी की ऐसे ‘ काले सोने ‘ के नाम से बुलाते थे। व्यापारी इन सामानों को समुद्री जहाज़ों और सड़को के रस्ते रोम पहुँचाते थे।
- दक्षिण भारत में ऐसे अनेक रोमन सोने के सिक्के मिले। रोम में व्यापर चल रहा था। व्यापारियों ने कई समुद्री रास्ते खोज निकाले। इनमें से कुछ समुद्र के किनारे चलते कुछ अरब सागर और बंगाल की खाड़ी पार करते थे।अफ़्रीका या अरब के पूर्वी तट से इस उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट पर पहुँचना चाहते थे तो दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के साथ चलना पसंद करते थे। समुद्र तटों से लगे
राज्य :-
- इस उपमहाद्वीप के दक्षिणी भाग में बड़ा तटीय प्रदेश है। इनमें बहुत-से पहाड़ , पठार और नदी के मैदान हैं। नदियों के मैदानी इलाकों में कावेरी का मैदान सबसे उपजाऊ है।
संगम मुवेन्दार :-
- तमिल शब्द जिसका अर्थ तीन मुखिया –चोल , चेर , तथा पाण्ड्य जो करीब 2300 साल पहले दक्षिण भारत में काफी शक्तिशाली माने जाते थे। इन सबके दो-दो सत्ता केंद्र थे। इनमें से एक तटीय हिस्से में और दूसरा अंदरूनी हिस्से में था।
- इस तरह छह केंद्रों में से दो बहुत महत्वपूर्ण थे। एक चोलो का पत्तन पुहार या कवेरीपट्टीनम , दूसरा पांडयों की राजधानी मदुरै। ये मुखिया लोगों से नियमित क्र के बजाय उपहारों की माँग करते थे। इसके लगभग 200 वर्षों के बाद पश्चिम भारत में सातवाहन नामक राजवंश का प्रभाव बढ़ गया। सातवाहनों का सबसे प्रमुख राजा गौतमी पुत्र श्री सातकर्णी था। उसके बारे में हमें उसकी माँ , गौतमी बलश्री द्वारा दान किये गए अभिलेख से पता चलता है।
रेशम मार्ग की कहानी :-
- कीमती , चमकीले रंग , और चिकनी , मुलायम बनावट की वजह से रेशमी कपड़े अधकांश समाज में बहुमूल्य मने जाते हैं। रेशमी कपड़ा तैयार करना एक जटिल प्रक्रिया है। रेशम के कीड़े से कच्चा रेशम निकालकर , सूत कताई , और फिर उससे कपड़ा बना जाता है। रेशम बनाने की तकनीक का अविष्कार सबसे पहले चीन में करीब 7000 साल पहले हुआ।
- इस तकनीक को उन्होंने हज़ारों साल तक बाकी दुनिया से छुपाए रखा। चीनी यात्री जिस रास्ते से यात्रा करते थे वह रेशम मार्ग (सिल्क रुट) के नाम से प्रसिद्ध हो गया। चीनी शासक ईरान और पश्चिमी एशिया के शासको को उपहार के तौर पर रेशमी कपड़े भेजते थे। 2000 साल पहले रोम के शासको और धनी लोगों के बिच रेशमी कपड़े पहनना एक फ़ैशन बन गया। सिल्क रूट पर नियंत्रण रखने वाले शासकों में कुषाण थे।
बौद्ध धर्म का प्रसार :-
- कुषाणों का सबसे प्रसिद्ध राजा कनिष्क था। उसने करीब 1900 साल पहले शासन किया। उसने एक बौद्ध परिषद का गठन किया , जिसमें एकत्र होकर विद्वान महत्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श करते थे। बुद्ध की जीवनी बुद्धचरित्र के रचनाकार कवि अश्वघोष , कनिष्क के दरबार में रहते थे अश्वघोष तथा अन्य बौद्ध विद्वानों ने अब संस्कृत में लिखना शुरू कर दिया था।
बौद्ध धर्म में महायान का विकास :-
- पहला मूर्तियों में बुद्ध की उपस्थिति , निर्वाण प्राप्ति को पेड़ की मूर्ति द्वारा दर्शाया जाता था , बुद्ध की प्रतिमाएँ। मथुरा और तक्षशिला में बनाई जाने लगीं। दूसरा परिवर्तन बोधिसत्व में आस्था को लेकर आया बोधिसत्व -जो ज्ञान प्राप्ति के बाद एकांत वास करते हुए ध्यान साधना कर सकते थे।
- लेकिन वे लोगो को शिक्षा देने और मदद करने के लिए सांसारिक परिवेश में ही रहना ठीक समझने लगे।बौद्ध धर्म पुरे मध्य एशिया , चीन , कोरिया , जापान तक फैल गई। दक्षिण-पूर्व की ओर श्रीलंका , म्यांमार , थाइलैंड , इंडोनेशिया तक फ़ैल गया।
तीर्थयात्री :-
- भारत की यात्रा पर आया चीनी बौद्ध तीर्थयात्री ‘ फा-शिएन ‘ काफी प्रसिद्ध है। 1600 साल पहले आया। ह्वेन त्सांग 1400 साल पहले भारत आया। और उसके बाद इत्सिंग 50 साल पहले आया।
भक्ति की शुरुआत :-
- देवी-देवताओं की पूजा का चलन शुरू हुआ जिससे हिन्दू धर्म की प्रमुख पहचान बन गयी। इनमें शिव , विष्णु और दुर्गा जैसे देवी-देवता शामिल हैं। भक्ति मार्ग की चर्चा हिन्दुओं के पवित्र गंन्थ ‘ भगवदगीता ‘ में की गई है।
अध्याय 10 : नए साम्राज्य और राज्य
प्रशस्तियाँ :- यह एक विशेष किस्म का अभिलेख है , जिन्हे प्रशस्ति कहते हैं। यह एक संस्कृत शब्द है , जिसका अर्थ ‘ प्रशंसा ‘ होता है। प्रशस्तियाँ लिखने का प्रचलन भी था।
समुद्रगुप्त की प्रशस्ति :-
- समुद्रगुप्त के दरबार में कवि व मंत्री रहे हरिषेण ने इसमें राजा की एक योद्धा , युद्धों को जीतने वाले राजा , विद्वान तथा एक उत्कृष्ट कवि ने भरपूर प्रशंसा की है।
हरिषेण द्वारा समुद्रगुप्त की नीतियाँ :-
- आर्यावर्त के नौ शासकों को समुद्रगुप्त ने हराकर उनके राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लिया।
- दक्षिणापथ के बारह शासक आते हैं। इन सब ने हार जाने पर समुद्रगुप्त के सामने समर्पण किया था।
- इसमें असम , तटीय बंगाल , नेपाल और उत्तर-पश्चिम में कई गण या संघ आते थे। ये समुद्रगुप्त के लिए उपहार लाते थे। उनकी आज्ञाओं का पालन करते थे तथा उनके दरबार में उपस्थ्ति हुआ करते थे।
- कुषाण तथा शक वंश और श्रीलंका के शासक भी थे। इन्होने समुद्रगुप्त की अधीनता स्वीकार की और अपनी पुत्रियों का विवाह उससे किया।
विक्रम संवत :-
- 58 ईसा पूर्व में प्रारंभ होने वाले विक्रम संवत को गुप्त राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय के नाम से जोड़ा जाता है ऐसा कहा जाता है की उन्होंने शको पर विजय के प्रतीक के रूप म इस संवत की स्थापना की तथा विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी।
वंशावलियाँ :-
- अधिकांश प्रशस्तियाँ शासको के पूर्वजों के बारे में भी बताती है। उनकी माँ कुमार देवी , लिच्छवि गण की थी और पिता चन्द्रगुप्त गुप्तवंश के पहले शासक थे , जिन्होंने महाराजाधिराज जैसी बड़ी उपाधि धारण की। समुद्रगुप्त ने भी यह उपाधि धारण की।
हर्षवर्धन तथा हर्षचरित :-
- 1400 साल पहले हर्षवर्धन ने शासन किया। उनके दरबारी कवि बाणभट्ट ने संस्कृत में उनकी जीवनी हर्षचरित लिखी है। इसमें हर्षवर्धन की वंशावली देते हुए उनके राजा बनने तक का वर्णन है। चीनी यात्री ह्वेन त्सांग हर्ष के दरबार में रहे। उन्होंने वहाँ जो कुछ देखा , उसका विस्तृत विवरण दिया है। थानेसर के राजा बने मगध और बंगाल को जीतकर उन्हें पूर्व में भी सफलता मिला थी। दक्कन की ओर बढ़ने की कोशिश की तब चालुक्य नरेश , पुलकेशिन द्वितीय ने उन्हें रोक दिया। पुलकेशिन द्वितीय की
प्रसस्तियाँ :-
- इस काल में पल्ल्व और चालुक्य दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण राजवंश थे। पल्लवों का राज्य राजधानी काँचीपुरम के आस-पास के क्षेत्रों से लेकर कावेरी नदी के डेल्टा तक फैला था , जबकि चालुक्यों का राज्य कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बिच स्थित था। चालुक्यों की राजधानी ऐहोल थी। यह एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था। धीरे-धीरे यह एक धर्मिक केंद्र भी बन गया जहाँ कई मंदिर थे। पल्लव और चालुक्य एक-दूसरे की सीमाओं का अतिक्रमण करते थे। पुलकेशिन द्वितीय सबसे प्रसिद्ध चालुक्य राजा थे। उनके बारे में हमें उनके दरबारी कवि ‘ रविकीर्ति ‘ द्वारा रचित प्रशस्ति से पता चलता है। रविकीर्ति के अनुसार उन्होंने पूर्व तथा पश्चिम दोनों समुद्रतटीय इलाकों में अपने अभियान चलाए। इसके अतिरिक्त उन्होंने हर्ष को भी आगे बढ़ने से रोका।
इन राज्यों का प्रशासन कैसे चलता था :-
- प्रशासन की प्राथमिक इकाई गाँव होते थे। लेकिन धीरे-धीरे कई नए बदलाव आए – कुछ महत्वपूर्ण प्रशासकीय पद आनुवंशिक बन गए। -कभी-कभी , एक ही व्यक्ति कई पदों पर कार्य करता था।- वहाँ के स्थानीय प्रशासन में प्रमुख व्यक्तियों का बहुत बोलबाला था।
एक नए प्रकार की सेना :-
- सामंत भूमि से कर वसूलते थे जिससे वे सेना तथा घोड़ो की देखभाल करते थे। साथ ही वे इससे युद्ध के लिए हथियार जुटाते थे।
दक्षिण के रज्यों में सभाएँ :-
- पल्ल्वों के अभिलेखों में कई स्थानीय सभाओं की चर्चा है। इनमें से एक था ब्राह्मण भूस्वामियों का संगठन जिसे सभा कहते थे। ये सभाएँ उप-समितियों के ज़रिए सिंचाई , खेतीबड़ी से जुड़ विभन्न काम , सड़क निर्माण , शनीय मंदिरो की देखरेख आदि का काम करती थी।
नगरम :-
- व्यापारियों के संगठन का नाम था। संभवत: इन सभाओं पर धनी तथा शक्तिशाली भूस्वामियों और व्यापारियों का नियंत्रण था। कालिदास – अभिज्ञान-शाकुंतलम
अध्याय 11 : इमारतें चित्र तथा किताबें
लौह स्तंभ :-
- महरौली (दिल्ली) में कुतुबमीनार के परिसर में खड़ा यह लौह स्तंभ भारतीय शिल्पकरों की कुशलता का एक अद्भुत उदाहरण है। इसकी ऊँचाई 7.2 मीटर और वजन 3 टन से भी ज़्यादा है। इसका निर्माण लगभग 1500 साल पहले हुआ। इसके बनने के समय की जानकारी हमें इस पर खुदे अभिलेख से मिलती है। इतने वर्षों के बाद भी इसमें जंग नहीं लगा है।
ईटों और पत्थरों की इमारतें :-
- हमारे शिल्पकरों की कुशलता के नमूने स्तूपों जैसी कुछ इमारतों में देखने को मिलते है।
- स्तूप का शब्दिक अर्थ ‘ टीला ‘ होता है हालांकि स्तूप विभिन्न आकार के थे – कभी गोल या लंबे तो कभी बड़े या छोटे। उन सब में एक समानता है। प्राय: सभी स्तूपों के भीतर एक छोटा-सा डिब्बा रखा है। डिब्बों में बुद्ध या उनके अनुयायियों के शरीर के अवशेष ( जैसे दाँत ,हड्डी या राख ) या उनके द्वारा प्रयुक्त कोई चीज या कोई कीमती पत्थर अथवा सिक्के रखे रहते है।
- इसी धातु-मंजूषा कहते है। प्रारंभिक स्तूप , धातु-मंजूषा के ऊपर रखा मिट्टी का टीला होता था। बाद के कल में उस गुम्बदनुमा ढाँचे को तराशे हुए पत्थरों से ढक दिया गया। प्राय: स्तूपों के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए एक वृताकार पथ बना होता था , जिसे प्रदक्षिण पथ कहते है। इस रास्ते को रेलिंग से घेर दिया जाता था , जिसे वेदिका कहते है।
साँची का स्तूप –
- मध्य प्रदेश इस काल में कुछ आरंभिक हिन्दू मंदिरों का भी निर्माण किया गया। मंदिरों में विष्णु , शिव तथा दुर्गा जैसी देवी-देवताओं की पूजा होती थी। मंदिरों का सबसे महत्वपूर्ण भाग गर्भगृह होता था , जहाँ मुख्य देवी या देवता की मूर्ति को रखा जाता था। पुरोहित , भक्त पूजा करते थे। भीतरगाँव जैसे मंदिरों में उसके ऊपर काफी ऊँचाई तक निर्माण किया जाता था, जिसे शिखर कहते थे। अधिकतर मंदिरों में मंडपनाम की एक जगह होती थी। यह एक सभागार होता था , जहाँ लोग इकट्ठा होते थे। महाबलीपुरम और ऐहोल मंदिर।
स्तूप तथा मंदिर किस तरह बनाए जाते थे :-
- पहला अच्छे किस्म के पत्थर ढूँढ़कर शिलाखंडों को खोदकर निकालना होता था। यहाँ पत्थरों को काट-छाँटकर तराशने के बाद खंभो , दीवारों की चौखटों , फ़र्शों तथा छतों का आकार दिया जाता था। मुश्किल सबके तैयार हो जाने पर सही जगहों पर उन्हें लगाना काफी मुश्किल का काम था।
पुस्तकों की दुनिया :-
- 1800 साल पहले एक प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य ‘ सिलप्पदिकारम ‘ की रचना इलांगो नामक कवि ने की। पुरानी कहानियाँ :- पुराण का शब्दिक अर्थ है प्राचीन। इनमे विष्णु , शिव , दुर्गा या पार्वती जैसे देवी-देवताओं से जुड़ी कहानियाँ हैं। दो संस्कृत महाकाव्य महाभारत और रामायण लंबे अर्से से लोकप्रय रहे हैं। पुराणों और महाभारत दोनों को ही व्यास नाम के ऋषि ने संकलित किया था। संस्कृत रामायण के लेखक वाल्मीकि मैने जाते है।
विज्ञान की पुस्तकें :-
- इसी समय गणितज्ञ तथा खगोलशस्त्री आर्यभट्ट ने संस्कृत में आर्यभट्टीयम नामक पुस्तक लिखी। इसमें उन्होंने लिखा की दिन और रात पृथ्वी के अपनी धुरी पर चक्कर काटने की वजह से होते हैं , जबकि लगता है की रोज सूर्य निकलता है और डूबता है। उन्होंने ग्रहण के बारे में भी एक वैज्ञानिक तर्क दिया।
शून्य :-
- भारत के गतितज्ञों ने शून्य के लिए चिन्ह का अविष्कार किया आयुर्वेद :- प्राचीन भारत मेंआयुर्वेद के दो प्रसिद्ध चिकित्स्क थे – चरक ” चरकसंहिता औषधिशास्त्र ( प्रथम – द्वितीय शताब्दी ईस्वी ) और सुश्रुत- ” सुश्रुतसंहिता में शल्य चिकत्सा (चौथी शताब्दी ईस्वी )